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कविता

बुद्ध मुस्कराए हैं

हरीशचंद्र पांडे


लाल इमली कहते ही इमली नहीं कौंधी दिमाग में
जीभ में पानी नहीं आया
'यंग इंडिया' कहने पर हिंदुस्तान का बिंब नहीं बना

जैसे महासागर कहने पर सागर उभरता है आँखों में
जैसे स्नेहलता में जुड़ा है स्नेह और हिमाचल में हिम
कम से कमतर होता जा रहा है ऐसा

इतने निरपेक्ष विपर्यस्त और विद्रूप कभी नहीं थे हमारे बिंब
कि पृथिवी पर हो सबसे संहारक पल का रिहर्सल
और कहा जाए
बुद्ध मुस्कराए हैं

 


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